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*भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी पर दिल छू लेने वाली प्रस्तुति, "सरहद"* ********************************* *हिंदू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि के अवसर उत्तराखंड महापरिषद रंगमंडल के द्वारा नाटक का हुआ मंचन*

*भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी पर दिल छू लेने वाली प्रस्तुति, "सरहद"* ********************************* *हिंदू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि के अवसर उत्तराखंड महापरिषद रंगमंडल के द्वारा नाटक का हुआ मंचन*

           प्रेस विज्ञप्ति 
            लखनऊ 

भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी पर दिल छू लेने वाली प्रस्तुति, “सरहद”


हिंदू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि के अवसर उत्तराखंड महापरिषद रंगमंडल के द्वारा नाटक का हुआ मंचन

लखनऊ। उतराखंड महापरिषद का रंगमंडल भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली के सहयोग से हिंदू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि के अवसर पर सोमवार को मोहन सिंह बिष्ट सभागार, उत्तराखंड महापरिषद, कुर्मांचल नगर, लखनऊ में नाटक ‘‘सरहद’’ का मंचन किया गया।

नाटक में मुख्य अतिथि कर्नल सत्येन्द्र सिंह नेगी उप महाप्रबन्धक भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम लि0 उ0 प्र0 एवं अतिथि के रूप में लेफिटनेंट मदन मोहन पाण्डेय, सूबेदार मेजर पूरन सिंह अधिकारी, सुबेदार हेमेन्द्र सिंह राणा सुबेदार रतन सिंह, उत्तराखण्ड महापरिषद के सैनिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बिष्ट सम्मानित अध्यक्ष हरीश चन्द्र पंत, संयोजक दीवान सिंह अधिकारी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मंगल सिंह रावत, महासचिव,भरत सिंह बिष्ट द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर नाटक का शुभारम्भ किया। सागर सरहदी द्वारा लिखित नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय, सहायक निर्देशन – रोजी मिश्रा का था।

यह नाटक बहुत ही मार्मिक एवं दिल को छूने वाला है, 1947 में भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी और साथ ही रिफ्यूजी (शरणार्थियों) लोगों का एक अलग ही दर्द भरा चित्रण इस नाटक में था। यह पढ़ाया गया कि आजादी अहिंसा से मिली और बंटवारा शांति से हो गया। दोनों मुल्क के सियासतदानों ने एक दूसरे को कोसा, तोहमतें दी और अपने अपने मुल्को के मसीहा बन गये। लेकिन कहा जाता है कि इतिहास कितने गहरे दफन कर दीजिए मगर वो कुदरतन खुद सामने आ जाता है। नाटक में सरहद की जीवंत कहानी दिखाने की एक ईमानदार कोशिश की गयी।

सुप्रसिद्ध लेखक व नाटककार सागर सरहदी जी का यह नाटक वर्ष 1947 के भारत पाकिस्तान के बंटवारे पर शरणार्थियों की सामाजिक एवं मानसिक मनोदशा को दर्शाता है। सरहद पर एक शरणार्थी शिविर लगा है। जिसमें सारे शरणार्थी निर्वासित है और अपने प्रियजनों का, जो बिछड़ गए हैं उनका वहां इंतजार करते हैं। सरहद के दोनो तरफ दोनों मुल्क के सिपाही तैनात है, जो बंटवारे से पहले एक ही गांव में रहते थे और उन्हें मास्टर संतराम ने पढ़ाया था। वतन के लिए कुर्बान होने का हौसला तथा मां बहन की इज्जत करने की तालीम भी उन्होंने दी थी। कैप्टन भी मास्टर संतराम का शिष्य रहा है।

इसलिए उनकी बहन जो इस बंटवारे में बिछड़ गयी, को ढूढ़ने में उनकी मदद करता है साथ ही मास्टर जी के दुःख को बांटने की कोशिश भी करता है। इन्हीं हालातों का मारा एक किरदार गुमनाम भी है जो हर वक्त नशें में रहता है। उन खौफनाक मंजरो को वो कभी याद भी नहीं करना चाहता है।

मास्टर जी सरहद पर रात दिन बस अपनी बहन का टकटकी लगाकर इंतजार करते है। एक दिन मास्टर जी की बहन लाड़ली को लेकर कैप्टन आता है। जो कि अर्धविक्षिप्त हो गयी है तथा मानसिक, शारीरिक यातनाओं को झेलकर बॉर्डर पर पाक से लौटती है। उसके दिमाग में यातनाओं का इतना गहरा सदमा लगा है कि वह अपने भाई से भी दूर भागती है।

भाई से मिलने के बाद जब वो होश में आती है तो उसमें भाई से आंख मिलाने का साहस भी नहीं रहता है और वो उसे देखकर भागती है। उसे बचाने मास्टर भी दौड़ता है और अन्ततः दोनों, सिपाहियो की गोलियों का शिकार हो जाते है।

तब गुमनाम चीख चीख कर लोगों को बतलाता है कि देश और सरहद का बंटवारा करने वाले राजनेता मसीहा नहीं है। बल्कि मसीहा वो शरणार्थी है जिनके अपनों की लाशों पर चन्द सियासतदानों ने भारत देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांट कर अपने अपने सरहदों की लकीरें खड़ी कर दी। यही पर नाटक का समापन होता है।

नाटक के मुख्य किरदार मेंः’-
हिन्दुस्तानी सिपाही – गौतम राय
पाकिस्तानी सिपाही – सुमित श्रीवास्तव,
मास्टर संतराम – महेन्द्र गैलाकोटी
कैप्टन – योगेष षुक्ला
गुमनाम – अनुपम बिसरिया
लाडली – अनीता वर्मा
लाइट – देवाषीष मिश्र, म्यूजिक अभिषेक यादव, मेकअप हंसिका क्रिएषन,

नाटक इतना मार्मिक एवं दिल को छूने वाला था कि दर्शको अपने आंशू रोक नहीं पाये और नाटक की भूरि-भूरि प्रसंशा की गयी। सभी कलाकारों द्वारा अति सुन्दर अभिनय किया गया।

उक्त नाटक में पुष्पा वैष्णव, हेमा बिष्ट, देवश्वरी पवार, अंजली बौनाल, शशी जोशी, पुष्पा गैलाकोटी, शोभा पटवाल, पूनम कनवाल, हरितिमा पंत, मंजू पडलिया, शोभा पटवाल, मदन सिंह बिष्ट, भुवन पाठक, जगत सिंह राणा, संजय काला, पूरन सिंह जीना, सुरेन्द्र राजेश्वरी, पान सिंह, रमेश चन्द्र सिंह अधिकारी, अनुपम भण्डारी पूरन भदौला सहित अनेक पदाधिकारीगण एवं सदस्य उपस्थित रहें। अध्यक्ष हरीश चन्द्र पंत द्वारा संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली, अतिथियो, कलाकारो, प्रिन्ट मीडिया एवं दर्शको का आभार व्यक्त किया गया।

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          Journalist 

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